@ बीएचयू के चिकित्सक की वजह से खेत गिरवी रखने पर मजबूर हुआ वृद्ध किसान
@ सरकार की दी सहायता भी काम नही आयी, 3 साल से दर दर की ठोकर खाने को मजबूर
वाराणसी(जनवार्ता)।देश में जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चिकित्सा व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन का दावा कर रहे हैं वहीं उन्हीं के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में शर्मसार करने वाला एक प्रकरण सामने आया है। पूर्वांचल के एम्स कहे जाने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल चिकित्सालय के एक चिकित्सक ने ऐसा कारनामा किया जिससे गरीब वृद्ध किसान को अपनी बहू के आपरेशन के लिए उपजाऊ जमीन तक साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा। वह किसान बिहार के औरंगाबाद जिले का निवासी है।प्रधानमंत्री की कड़ी निगरानी के बावजूद बीएचयू अस्पताल मे मरीजों को कुछ डाक्टरों द्बारा गुमराह कर लूटा जा रहा है।आरोप है कि गरीब वृद्ध किसान की बहू को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सहायता कोष से धन आवंटन के बावजूद नियमों को ताक पर रखकर बाहर दवा की दुकान से खेल के तहत दवा खरीदवाई गयी।जिस वजह से उसका आवंटित धन भी नियमों का हवाला देकर बीएचयू ने जारी नहीं किया और किसान लगभग तीन वर्षों से दर दर की ठोकर खाने को मजबूर है ।
80 वर्षीय गरीब किसान सत्यदेव पांडेय ग्राम मित्रसेन अंबापुर,औरंगाबाद बिहार निवासी अपनी बहू विभा पांडेय के ऑपरेशन हेतु 2016 में बीएचयू के कार्डियोलाजी विभाग आए,जहां उन्हें डा संजय सिंह द्वारा आपरेशन हेतु लगभग दो लाख पचास हजार के खर्च का अनुमान बताया गया। जिसके बाद उक्त गरीब किसान द्वारा आवेदन के बाद प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री सहायता कोष से लगभग पौने दो लाख रूपए स्वीकृत कर बीएचयू अस्पताल को भेज दिया गया।आरोप है कि डा संजय सिंह ने उक्त पैसे का इस्तेमाल ना कर मरीज को लंका स्थित गुरु मेडिकल से दो लाख पचास हजार रुपये के ऑपरेशन की दवाएं खरीदे जाने का दबाव बना कर दवा खरीदवा दी।बाहर से दवा खरीदने के कारण मरीज का पीएम व सीएम सहायता कोष से आया धन भी बीएचयू में पड़ा रह गया और मरीज के परिजनों को दवा ऑपरेशन का खर्च नहीं मिल सका।
इस संबंध में जब मरीज के परिजनों द्वारा बीएचयू प्रशासन में शिकायत की गयी। तब सर सुंदरलाल चिकित्सालय के पूर्व अधीक्षक डॉ वीएन मिश्रा द्वारा 3 सदस्यीय कमेटी बनाकर जांच करायी गयी व रिपोर्ट वरिष्ठ अधिकारियों को भेज दी गयी। अस्पताल के दखल पर संबंधित दवा की दुकान में उसे ₹70000 चेक के माध्यम से लौटाया।परंतु आज तक कार्रवाई का इंतेज़ार है।कर्ज में डूबे परिजन बीएचयू के अस्पताल में न्याय के लिए भटक रहें है।अपने खर्च राशि को प्राप्त कर कर्ज चुकाने की प्रतीक्षा कर रहा है।इस संबंध में जब संबंधित डा संजय सिंह से मोबाइल पर बात की गयी तो वे बात करने से कतराने लगे और मीटिंग में होने का हवाला देकर फोन काट दिया।
बीएचयू में आए दिन इस तरह की शिकायतें आती है कि चिकित्सक मनमानी दुकान से दवा खरीदने तथा अपनी पसंद के पैथोलॉजी से जांच कराने का दबाव बनाते हैं। यह सब कमिशन का खेल है ।इसकी जड़ें काफी अंदर तक है। तमाम प्रयास के बावजूद इन पर रोक नहीं लग सका है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सालय को एक ईमानदार प्रशासक की जरूरत है।वैसे इस मामले में उच्च स्तरीय जांच भी अत्यंत आवश्यक है।
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