@राजनीतिक दल सांस्कृतिक संगठनों को रखा जाये निर्माण से दूर
वाराणसी। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि संसद राम मंदिर मुद्दे को राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा घोषित करे। राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा घोषित होने के बाद सुप्रीम कोर्ट को भारतीय संविधान प्रावधान के तहत चार हफ्ते में फैसला सुनाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यह लोकहित से जुड़ा मामला है। केन्द्र सरकार को जनता की इच्छा का सम्मान करना चाहिए। यही वास्तविक लोकतंत्र है। शंकराचार्य ने बुधवार को तीन दिवसीय परम धर्मसंसद का परमादेश सुनाया।
केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ में आयोजित प्रेसवार्ता में उन्होंने कहा, संसद को चाहिए कि संविधान में संशोधन करके राम मंदिर को राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा घोषित करे। यह स्थापित विधि व्यवस्था है कि राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा घोषित होने के बाद उच्चतम न्यायालय को चार हफ्ते में फैसला सुनाना होगा। यदि कोई फैसला नहीं आता है तो न्यायालय ने जो स्टे लगाया गया है, वह स्वत: निष्प्रभावी हो जायेगा। उन्होंने कहा कि धर्मसंसद का यह परमादेश केन्द्र सरकार के साथ ही लोकसभा अध्यक्ष एवं सभी सांसदों को भेजा जाएगा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सरकार जनप्रतिनिधि होती है। जनता की मांग पूरा करना सरकार का कर्तव्य होता है। दूसरी स्थिति अभिभावक की है। जिस तरह अभिभावक बच्चों के हित में फैसला लेते हैं, उसी तरह केन्द्र सरकार को अभिभावक के रूप में राममंदिर पर उचित निर्णय लेना चाहिये। उन्होंने कहा कि हम सर्वोच्च न्यायालय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को यथावत रखने का भी अनुरोध करेंगे।
स्वामी स्वरूपानंद ने कहा, धर्मसंसद का स्पष्ट मत है कि श्रीराम मंदिर का निर्माण धर्माचार्यों की देखरेख में होना चाहिये। सरकार को इसके लिये चारों शंकराचार्यों, रामानंदाचार्यों, रामानुजाचार्यों, माधवाचार्यों, निंबार्काचार्यों, १३ अखाड़ों के प्रमुखों से मशविरा लेकर निर्माण कराना चाहिये। सामाजिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक संस्थाएं मंदिर निर्माण से दूर रहें। स्वामी स्वरूपानंद ने कहा कि भगवान राम मनुष्य नहीं थे, वह परब्रह्म हैं। प्रतिमाएं महापुरुषों की बनाई जाती हैं भगवान की प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति होती है। लेकिन दुर्भाग्य है कि सरदार पटेल, पं. दीनदयाल उपाध्याय की तरह सरकार भगवान राम की विशालकाय प्रतिमा बनवाने जा रही है। धर्मसंसद के प्रवर धर्माधीश स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सांसदों से मांग की कि ११ दिसंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे को रखा जाय। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से भी अनुरोध किया कि राम मंदिर प्रकरण की नियमित सुनवाई हो ताकि जल्द फैसला आ सके।
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